पतझड़ के मौसम में सब पुराने पत्ते झड़ जाने के बाद नीम कच्ची नाजुक कोपलों से भर जाता है और साथ ही उस पर बौर (फूल) लद जाते हैं. नीम के आयुर्वेदिक गुणों से हम भारतीय भली भाँति परीचित हैं. नीम की दातौन ने वर्षों हमारे दाँतों की रक्षा की है तो चैत्र के महीने में कोमल कोपलों का सेवन वर्ष भर के लिए हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को संरक्षित करता है. अपने दुर्लभ गुणों के कारण नीम आदि वृक्षों को परंपरा से जोड़कर स्वस्थ रखने की प्रक्रिया भारतीय संस्कारों में जन्मघूँटी की तरह दी गई है.
स्वस्थ रहने के प्राकृतिक प्रयोगों की परंपरा में इसी प्रकार नव संवत्सर (युगादि/उगादि) पर दक्षिण भारत में प्रसाद रूप में सप्तरूचिलू बनाने की प्रथा है. तीखा,खट्टा, मीठा, कड़वा,नमकीन आदि सात प्रकार के स्वाद एक ही साथ शामिल होने के कारण सप्तरूचिलू नाम दिया गया. इस मौसम में आसानी से और ताजा उपलब्ध स्वास्थ्यवर्धक पदार्थों को लेकर बनाया जाने वाला सप्तरूचिलू प्रकृति के आशीष रूप में ई्श्वर को अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है.


सामग्री -
कच्ची केरी
इमली
गुड़
नमक
लाल मिर्च पिसी हुई
नीम के फूल
शहद
विधि-
कच्ची केरी को कद्दूकस कर लें या बारीक टुकड़ों में काटें. इमली को पानी में भिगोकर बीज निकालकर गाढ़ा घोल (पल्प) बना लें.
गुड़ के बारीक टुकड़े कर लें . अब सभी सामग्री को शहद मिलाते हुए चम्मच से अच्छी तरह मिला लें. चटनी तैयार है.
युगादि पर भीगी हुई मूँग की दाल में आम (केरी) के कटे टुकड़े , नमक, मिर्च आदि मिलाकर भोग बनाया जाता है. साथ ही गुड़ का सादा पानी और सप्तरूचिलू चटनी भी भोग अर्पण कर प्रसाद रूप में ली और वितरित की जाती है.
स्वस्थ रहने के प्राकृतिक प्रयोगों की परंपरा में इसी प्रकार नव संवत्सर (युगादि/उगादि) पर दक्षिण भारत में प्रसाद रूप में सप्तरूचिलू बनाने की प्रथा है. तीखा,खट्टा, मीठा, कड़वा,नमकीन आदि सात प्रकार के स्वाद एक ही साथ शामिल होने के कारण सप्तरूचिलू नाम दिया गया. इस मौसम में आसानी से और ताजा उपलब्ध स्वास्थ्यवर्धक पदार्थों को लेकर बनाया जाने वाला सप्तरूचिलू प्रकृति के आशीष रूप में ई्श्वर को अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है.


सामग्री -
कच्ची केरी
इमली
गुड़
नमक
लाल मिर्च पिसी हुई
नीम के फूल
शहद
विधि-
कच्ची केरी को कद्दूकस कर लें या बारीक टुकड़ों में काटें. इमली को पानी में भिगोकर बीज निकालकर गाढ़ा घोल (पल्प) बना लें.
गुड़ के बारीक टुकड़े कर लें . अब सभी सामग्री को शहद मिलाते हुए चम्मच से अच्छी तरह मिला लें. चटनी तैयार है.
युगादि पर भीगी हुई मूँग की दाल में आम (केरी) के कटे टुकड़े , नमक, मिर्च आदि मिलाकर भोग बनाया जाता है. साथ ही गुड़ का सादा पानी और सप्तरूचिलू चटनी भी भोग अर्पण कर प्रसाद रूप में ली और वितरित की जाती है.